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जादौन राजपूतों के उपगोत्र या कुल

जादौन राजपूतों के उप गोत्र और गांव  दोस्तो इस पोस्ट में जादौन राजपूतों के उपगोत्र जो उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश राजस्थान में पाए जाते हैं उनको सूची बद्ध किया है आप अगर आप जादौन राजपूत हैं तो अपना गोत्र इस लिस्ट में देखें और नहीं है तो मुझे बताएं। लिस्ट में जिस उप गोत्र के सामने नीले रंग में वही गोत्र लिखा है उसे क्लिक करने पर पूरा पेज खुल जायेगा जिसमें उन सभी गांवों का विवरण है जहां ये गोत्र पाया जाता है।लिस्ट अभी तक मिली जानकारी के आधार पर है आगे जो भी जानकारी आएगी मैं उसे जोड़ दूंगा। लिस्ट ओपन करने के लिए बड़े और नीले अक्षरों में लिखे जादौन राजपूतों के गोत्र और गांव को क्लिक करें।  

महाराणा प्रताप और घास की रोटियां

 महाराणा प्रताप ने अपने संघर्ष के दिनों में जिस घास की रोटी और अन्य वनस्पतियों का सहारा लिया था, वे पोषण से भरपूर थीं। अनुसंधान मे सामने आया कि दक्षिणी राजस्थान में कुपोषण की वजह परंपरागत खाद्यान्न से विमुख होना भी है। असल में उस वक्त आदिवासी परिवार घास-फूस, वनस्पति की रोटी और सब्जियों से पेट भरते थे। दक्षिणी राजस्थान के वीरो ने इन्हीं कंद-मूल और घास की रोटियां खाकर मुगल सेना को लोहे के चने चबवाए थे। लेकिन इस पौष्टिक आहार को जनजाति के लोग भूल बैठे। यही कारण है कि परम्परागत खाद्यान्न छोड़ते ही बीमारियों ने घर बना लिया। अधिकतर प्रसूताएं रक्ताल्पता की शिकार रहती है जिससे बच्चे भी कुपोषित पैदा होते हैं। एक अनुसंधान के अनुसार महाराणा प्रताप कालीन खाद्य व कृषि संस्कृति को पुनर्जीवित करने की जरूरत है जो कुपोषण समाप्त करने में कारगर साबित हो। घास नहीं, पौष्टिक खाद्यान्न जब महाराणा को जंगल में जीवन व्यतीत करना पड़ा था, तब मेवाड़ की मगरियों और घाटियों की उपजाऊ धरा में घास की विभिन्न प्रजातियों ने उन्हें और परिवार को अपने पोषक तत्वों से पोषित किया था। प्रताप व उनकी सेना ने अपामार्ग के बीजों क...

स्पष्टीकरण

 टमकौलिया या टमकौले और केबला बागी या केबला बाग कोई उपगोत्र नहीं हैं इनका असली गोत्र वैश्नावत या वैश्णावत है। बकरतुल्ला और बडगइयां दोनों एक ही गोत्र हैं।